फिल्म: सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव
डायरेक्टर: रीमा कागती
कास्ट: आदर्श गौरव, विनीत कुमार सिंह, शशांक अरोरा, मंजिरी पुपाला, मुस्कान जाफ़री
टाइम: 131 मिनिट्स
रीमा कागती और जोया अख्तर हमेशा ऐसी फिल्में बनाती हैं जो एकदम फ्रेश लगती हैं और सीधे दिल में उतर जाती हैं। उनकी कहानियों में एक अलगही जादू होता है, जो उन्हें बाकी फिल्ममेकर्स से हटके बनाता है। अब रीमा कागती फिर से अपना जलवा दिखाने आ गई हैं सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांवके साथ। ये सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक जबरदस्त और मोटिवेट करने वाली कहानी है। रीमा का डायरेक्शन और उनकी कहानी कहने का अंदाजइस फिल्म को और भी खास बना देता है। अगर आपको सिनेमा दिल से पसंद है, तो ये फिल्म मिस करने वाली नहीं है।
सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव उन चुनिंदा फिल्मों में से एक है जो दिल में अपनी छाप छोड़ जाती हैं। ये सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि सिनेमा के जादू,दोस्ती, सपनों और हार न मानने के जज़्बे को सेलिब्रेट करने वाली फिल्म है। फिल्म की कहानी नासिर (आदर्श गौरव) के इर्द-गिर्द घूमती है, जोमालेगांव में एक छोटे से थिएटर का मालिक है। लेकिन उसका असली सपना अपनी खुद की फिल्म बनाना है, और यही ख्वाब उसकी और उसकेदोस्तों की ज़िंदगी बदल देता है। मालेगांव जैसे शहर में, जहां सिनेमा लोगों के लिए सबसे बड़ा एस्केप है, ये फिल्म हमें हंसी, इमोशन्स और संघर्ष सेभरी एक खूबसूरत जर्नी पर ले जाती है। सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि उन लोगों की कहानी है, जो किसी भी हाल में अपनेसपनों को छोड़ने को तैयार नहीं होते।
सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव की कहानी असल ज़िंदगी से प्रेरित है और 2008 की फैज़ा अहमद खान की डॉक्यूमेंट्री सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव सेइंस्पिरेशन लेती है। ये फिल्म नासिर शेख के जुनून की असली मिसाल है, जिसने छोटे से शहर मालेगांव में फिल्ममेकिंग का जादू बिखेरने का सपनादेखा।
पैसों की तंगी और प्रोफेशनल सुविधाओं की कमी के बावजूद, नासिर और उसके दोस्त—फरोग (विनीत कुमार सिंह), जो एक स्ट्रगलिंग राइटर है, औरशफीक (शशांक अरोड़ा), जो मिल में काम करता है लेकिन एक्टिंग का दीवाना है—एक बड़ा फैसला लेते हैं। उनका मिशन? शोले की एक मज़ेदारपैरोडी बनाना। अपने इस सपने को पूरा करने की कोशिश में, वे सिर्फ एक फिल्म ही नहीं बनाते, बल्कि मालेगांव की लोकल कल्चर का हिस्सा बनजाते हैं। ये सफर उन्हें सिखाता है कि मेहनत, टीमवर्क और सिनेमा के लिए प्यार से हर मुश्किल पार की जा सकती है। सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांवसिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि उन लोगों की कहानी है जो बड़े सपने देखने और उन्हें पूरा करने की हिम्मत रखते हैं।
सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव में रीमा कागती का डायरेक्शन इसकी सबसे बड़ी खासियतों में से एक है। हल्के-फुल्के ह्यूमर और इमोशनल ड्रामा केपरफेक्ट बैलेंस के साथ, उन्होंने एक ऐसी कहानी गढ़ी है जो पूरी तरह इंसानी जज़्बातों से भरी हुई है। रीमा ने अपने किरदारों की मेहनत, संघर्ष औरकमियों को इतने सच्चे तरीके से दिखाया है कि वे कहीं से भी ओवर-द-टॉप या कैरिकेचर नहीं लगते। उनके डायरेक्शन की सबसे खास बात ये है कि वेअपने किरदारों के रॉ इमोशन्स को पकड़ने में माहिर हैं। हर सीन में इतनी ऑथेंटिसिटी है कि वो सीधे दिल तक पहुंचता है। फिल्म का देसी, लेकिनदिलकश टोन मालेगांव की छोटी-छोटी खुशियों और मुश्किलों को सहेज कर रखता है, वहीं सिनेमाई अनुभव को भी एक लेवल ऊपर ले जाता है।सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि छोटे शहरों में पलने वाले बड़े सपनों की खूबसूरत झलक है, और रीमा कागती ने इसे बखूबीपरदे पर उतारा है।
सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव में आदर्श गौरव ने नासिर के रोल में कमाल कर दिया है। उनकी परफॉर्मेंस में इतनी लेयर्स हैं कि वो सिर्फ एक फिल्म बनानेका सपना देखने वाला लड़का नहीं लगता, बल्कि उसकी कमियां—ईगो, बड़ा आदमी बनने की चाहत और अंदर की असुरक्षा—उसे और भी रियलबनाती हैं। आदर्श ने नासिर में ऐसी मासूमियत और बेचैनी दिखाई है, जो बताती है कि कभी-कभी इंसान अपने ही जुनून में खो जाता है। विनीत कुमारसिंह ने फरोग के रोल में एकदम जमीन से जुड़ा परफॉर्मेंस दिया है, जो इमोशन्स से भरा हुआ है। लेकिन असली धमाका शशांक अरोड़ा करते हैं! दूसरेहाफ में वो पूरी तरह छा जाते हैं। शफीक के किरदार में उनकी मासूमियत और सच्चाई ऐसी है कि वो सबसे प्यारा किरदार बन जाते हैं। सुपरबॉयज़ऑफ़ मालेगांव में हर एक्टर ने इतना नेचुरल काम किया है कि फिल्म खत्म होने के बाद भी ये किरदार दिमाग से निकलते नहीं!
सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव में सपोर्टिंग कास्ट ने भी पूरी जान लगा दी है। अनुज सिंह दुहान, मस्कान जाफरी और मंजीरी पुपाला—सबने अपने-अपनेकिरदार में जान डाल दी है। हर कोई कहानी में फिट बैठता है, और एक्टर्स के बीच की ट्यूनिंग इतनी नेचुरल लगती है कि ऐसा लगता ही नहीं कि कोईएक्टिंग कर रहा है। इन्हीं सब वजहों से फिल्म और भी रियल लगती है। सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव सिर्फ एक-दो लोगों की कहानी नहीं, बल्कि पूरीटीम का दम दिखाने वाली फिल्म है। हर किरदार ने अपना हिस्सा इतनी मजबूती से निभाया है कि फिल्म और भी खास बन जाती है।
सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव को खास बनाता है इसका ताज़गी भरा नजरिया, जो आज के बॉलीवुड के बड़े बजट और स्टार पावर वाले ट्रेंड से अलगखड़ा है। ये फिल्म दिखाती है कि एक दमदार कहानी कहने के लिए न तो करोड़ों का बजट चाहिए और न ही बड़े नाम—बस जज़्बा और सच्चाईचाहिए। इस फिल्म की जान इसकी कहानी में है—एक छोटे शहर मालेगांव के उन दोस्तों की कहानी, जो हालात कैसे भी हों, अपने सपनों का पीछानहीं छोड़ते। जब पूरी दुनिया दूसरी दिशा में भाग रही हो, तब भी ये लोग अपनी राह खुद बनाते हैं। फिल्म का मैसेज बिल्कुल साफ है—अगर आपकेअंदर सच्चा जुनून, दोस्ती का साथ और हार न मानने का हौसला है, तो कोई भी सपना हकीकत बन सकता है!
सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव की असली खूबसूरती यही है कि ये सिनेमा की उस ताकत को सलाम करता है, जो लोगों को जोड़ती है, बदलाव लाती हैऔर नामुमकिन को मुमकिन बना देती है। ये फिल्म याद दिलाती है कि सिनेमा सिर्फ बड़े सेट्स, ग्लैमर या स्टार पावर तक सीमित नहीं है—बल्किअसली सिनेमा वो होता है, जिसमें पर्दे के पीछे खड़े लोग अपना दिल और जान लगा देते हैं। ये फिल्म बताती है कि एक अच्छी कहानी कहने के लिएभव्यता नहीं, बल्कि सच्ची मेहनत, क्रिएटिविटी और कभी न हार मानने का जज़्बा चाहिए। सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्किउन लोगों की हिम्मत की दास्तान है, जो सिनेमा को सच में जीते हैं।
आखिर में, सुपरबॉयज़ ऑफ़ मालेगांव एक ऐसी फिल्म है जो दिल को छू जाती है और साबित करती है कि कम बजट में भी बेहतरीन सिनेमा बनायाजा सकता है। रीमा कागती की शानदार डायरेक्शन और पूरी कास्ट की दमदार परफॉर्मेंस इस फिल्म को एक मस्ट-वॉच बनाते हैं। ये फिल्म याददिलाती है कि कोई सपना छोटा नहीं होता और कोई ख्वाहिश इतनी बड़ी नहीं कि उसे पूरा न किया जा सके। सिनेमा के लिए बेइंतहा प्यार, साथमिलकर कुछ बनाने की खुशी और दोस्ती की ताकत—यही सब मिलकर इस फिल्म को एक यादगार सिनेमाई अनुभव बना देते हैं।