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सुश्रुत से सेल्फी तक: भारत प्लास्टिक सर्जरी का वैश्विक केंद्र कैसे बना? आप भी जानें

मुंबई, 16 सितम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन) एक समय था जब प्लास्टिक सर्जरी को सिर्फ हॉलीवुड की दुनिया से जोड़कर देखा जाता था, लेकिन आज भारत इस क्षेत्र में एक वैश्विक शक्ति बनकर उभरा है। चिकित्सा के इतिहास में, भारत का नाम महर्षि सुश्रुत के साथ हमेशा जुड़ा रहेगा, जिन्हें दुनिया में प्लास्टिक सर्जरी का जनक माना जाता है। उनकी 'सुश्रुत संहिता' में आज से 2600 साल पहले नाक और शरीर के अन्य अंगों के पुनर्निर्माण की जो विधियां वर्णित हैं, उनका इस्तेमाल आज भी होता है।

आज, भारत में प्लास्टिक सर्जरी का यह समृद्ध इतिहास आधुनिक तकनीक और बढ़ती मांग के साथ मिलकर एक नए युग की शुरुआत कर रहा है। 'सेल्फी कल्चर' और सोशल मीडिया ने लोगों में अपने लुक को लेकर जागरूकता बढ़ाई है, जिससे कॉस्मेटिक सर्जरी की मांग में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।

अतीत का गौरव और वर्तमान की वास्तविकता

प्राचीन भारत में, सुश्रुत ने माथे की त्वचा का उपयोग करके कटी हुई Read more...

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टाइप 2 डायबिटीज: डॉक्टर्स की पहली पसंद 'मेटफॉर्मिन', क्यों नहीं कीटो डाइट या इंटरमिटेंट फास्टिंग?

मुंबई, 17 सितम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन) डायबिटीज, जिसे हिंदी में मधुमेह भी कहते हैं, आज के समय में एक आम समस्या बन गई है। टाइप 2 डायबिटीज के इलाज में दवाएं और जीवनशैली में बदलाव दोनों अहम माने जाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि डॉक्टर तुरंत कीटो डाइट या इंटरमिटेंट फास्टिंग जैसी लोकप्रिय विधियों के बजाय 'मेटफॉर्मिन' (Metformin) दवा क्यों लिखते हैं? विशेषज्ञ मानते हैं कि इसके पीछे कई ठोस कारण हैं, जो सिर्फ़ इलाज की प्रभावशीलता से ही नहीं, बल्कि मरीज़ की सुरक्षा और दीर्घकालिक स्वास्थ्य से भी जुड़े हैं।

क्यों मेटफॉर्मिन है पहली पसंद?
  1. दशकों का अनुभव: मेटफॉर्मिन एक पुरानी और भरोसेमंद दवा है। दशकों से इसका उपयोग किया जा रहा है और इसके प्रभाव और सुरक्षा को लेकर वैज्ञानिक रूप से पुष्ट प्रमाण मौजूद हैं। यह ब्लड शुगर को नियंत्रित करने और शरीर में इंसुलिन के उपयोग को बेहतर बनाने में प्रभावी साबित हुई है।
  2. किफायती और सुरक्षि Read more...

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बॉलीवुड से एक नया फ़ूड ट्रेंड: सोहा अली खान का डाइट सीक्रेट, लौकी-तोरई और टिंडे का कमाल!

मुंबई, 12 सितम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन) जहां एक ओर बॉलीवुड सितारे अपने महंगे और विदेशी डाइट प्लान के लिए जाने जाते हैं, वहीं अभिनेत्री सोहा अली खान ने एक बेहद देसी और सरल डाइट रूटीन अपनाकर सबको चौंका दिया है। एक हालिया इंटरव्यू में, सोहा ने बताया कि वह "फूडी नहीं हैं" और उन्हें एक ही तरह का खाना बार-बार खाने से कोई दिक्कत नहीं होती है। उनका डाइट सीक्रेट सुनकर आप हैरान रह जाएंगे—यह है लौकी, तोरई और टिंडा!

सोहा अली खान ने साझा किया कि वह इन तीन सब्जियों और पीली दाल को रोज़ खा सकती हैं और कभी बोर नहीं होतीं। उनके लिए, ये केवल सब्जियां नहीं, बल्कि एक आरामदायक और स्वास्थ्यप्रद भोजन का हिस्सा हैं। वह अपने दिन की शुरुआत भी एक फिक्स्ड रूटीन के साथ करती हैं: ग्लूटेन-फ्री टोस्ट, एवोकाडो और एक पोच्ड एग। इस नाश्ते से उन्हें स्वस्थ वसा (healthy fats), प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का सही मिश्रण मिलता है।

एक्सपर्ट की राय: क्या एक ही खा Read more...

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एफएएफओ पेरेंटिंग: बच्चों को उनके हाल पर छोड़ना या उन्हें आत्मनिर्भर बनाना

मुंबई, 17 सितम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन) "बच्चे हैं, गलती करेंगे ही" — यह सोच अक्सर भारतीय माता-पिता को अपने बच्चों को मुश्किलों से बचाने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन क्या होगा अगर हम बच्चों को उनकी गलतियों से खुद सीखने दें? "एफएएफओ पेरेंटिंग" (FAFO Parenting) नामक यह नया ट्रेंड इसी विचार पर आधारित है, जिसका मतलब है "फ अराउंड एंड फाइंड आउट" यानी "गलती करो और उसका परिणाम भुगतो"। यह एक ऐसा तरीका है जो बच्चों को प्राकृतिक परिणामों के माध्यम से जवाबदेही, लचीलापन और बेहतर निर्णय लेने की कला सिखाता है।

यह पेरेंटिंग स्टाइल माता-पिता को बार-बार सलाह देने या बच्चों से मोलभाव करने की थकान से मुक्ति दिलाता है। मान लीजिए, एक बच्चा समय पर खाना नहीं खाता और उसका खाना ठंडा हो जाता है। एफएएफओ पेरेंटिंग के तहत, माता-पिता उसे गर्म करने के बजाय ठंडा खाना खाने देते हैं, जिससे बच्चा अगली बार समय का महत्व समझता है। यह कोई लापरवाही न Read more...

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स्वास्थ्य: विज्ञान का कहना है, ऑफिस में रखे ये पौधे आपकी प्रोडक्टिविटी 15% तक बढ़ा सकते हैं

मुंबई, 17 सितम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन) क्या आपने कभी सोचा है कि आपके ऑफिस डेस्क पर रखा एक छोटा-सा पौधा न सिर्फ सजावट का सामान है, बल्कि आपकी काम करने की क्षमता को भी बढ़ा सकता है? हाल ही में हुए वैज्ञानिक शोधों ने इस बात की पुष्टि की है। एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, ऑफिस में पौधे रखने से कर्मचारियों की उत्पादकता (productivity) में 15% तक की वृद्धि हो सकती है।

वर्ष 2014 में 'जर्नल ऑफ एक्सपेरिमेंटल साइकोलॉजी: अप्लाइड' में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि जिन कार्यस्थलों में गमले में लगे पौधे रखे गए, वहां के कर्मचारियों ने उन जगहों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया जहां कोई पौधा नहीं था। इस शोध के नतीजों ने साबित किया कि हरे-भरे पौधे सिर्फ आँखों को सुकून नहीं देते, बल्कि मानसिक एकाग्रता को भी बढ़ाते हैं और तनाव को कम करते हैं।

इस निष्कर्ष को और मजबूत करते हुए, 2023 में नीदरलैंड्स में हुए एक अन्य अध्ययन में यह भी देखा गया कि डेस्क पर पौधे होने Read more...

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