माथे की शोभा 'बिंदी': इतिहास, संस्कृति और आधुनिक पहचान का प्रतीक, आप भी जानें
मुंबई, 15 सितम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन) भारतीय संस्कृति में माथे पर सजी एक छोटी-सी बिंदी केवल एक श्रृंगार नहीं, बल्कि सदियों पुराने इतिहास, परंपरा और सशक्त पहचान का प्रतीक है। संस्कृत शब्द 'बिंदु' से जन्मी 'बिंदी' ने 5,000 से भी अधिक वर्षों की यात्रा की है, और आज यह पारंपरिक विरासत और आधुनिक फैशन का एक अनूठा संगम बन गई है।
पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व
बिंदी का इतिहास भारतीय परंपरा और आध्यात्म से गहराई से जुड़ा है। हिंदू धर्म में, भौंहों के बीच के स्थान को 'आज्ञा चक्र' या 'तीसरा नेत्र' माना जाता है। यह चक्र ज्ञान, एकाग्रता और दिव्य दृष्टि का केंद्र है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर बिंदी लगाने से ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है और ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।
इसके अलावा, पारंपरिक रूप से सिंदूर से लगाई जाने वाली लाल बिंदी विवाहित महिलाओं के सौभाग्य, प्रेम और सम्मान का प्रतीक मानी जाती थी। यह न केवल उनकी वैवाहिक स् Read more...