श्राप, शक्ति और ममता की कहानी है काजोल स्टारर यह फिल्म



‘माँ’ एक आम हॉरर फिल्म नहीं है। ये ममता का, शक्ति का और सच्चे डर का खूबसूरत संगम है,

Posted On:Friday, June 27, 2025

डायरेक्टर: विशाल फुरिया
कास्ट: काजोल, रोनित रॉय, इंद्रनील सेनगुप्ता, खेरीन शर्मा, जितिन गुलाटी, गोपाल सिंह, सुर्यशिखा दास, यानिया भारद्वाज, रूपकथा चक्रवर्ती
समय: 135 मिनट

क्या कोई हॉरर फिल्म आपको डराने के साथ-साथ भावुक भी कर सकती है? विशाल फुरिया की ‘माँ’ इस सवाल का जवाब ‘हां’ में देती है। जब एकमां की ममता पर राक्षसी श्राप का साया पड़ता है, तब जन्म लेती है एक ऐसी कहानी जो सिर्फ डर की नहीं, बल्कि शक्ति की है। ‘माँ’ पौराणिकता औरआज की सच्चाई के बीच का वो पुल है, जो आस्था और अंधकार की लड़ाई को एक नई रोशनी में दिखाता है।

फिल्म ‘माँ’ की कहानी चंद्रपुर नाम के एक रहस्य से भरे गांव से शुरू होती है, जहां धुंध और सन्नाटा छाया रहता है और एक पुराना श्राप धीरे-धीरे जागनेलगता है। गांव की अंबिका नाम की एक मां अपनी बेटी श्वेता को इस अनजाने खतरे से बचाने की कोशिश करती है, लेकिन जब ये श्राप हदें पार करदेता है, तो अंबिका के अंदर की देवी जैसी ताकत जाग जाती है। यह सिर्फ एक मां की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह विश्वास और बुराई के बीच की भिड़ंतहै, जिसमें पुराने किस्से, समाज की चुप्पी और मां का प्यार मिलकर ऐसी कहानी बनाते हैं जो डराती भी है और दिल को छू भी जाती है।

इस फिल्म के ट्विस्ट किसी सस्पेंस म्यूज़िक के सहारे नहीं आते। वो धीरे-धीरे आपके भीतर उतरते हैं, जब आप अंबिका की आंखों में बदलाव देखनाशुरू करते हैं, जब उसकी चुप्पी आपको बेचैन करने लगती है, तब समझ में आने लगता है कि कहानी एक बड़ा मोड़ ले रही है।

‘माँ’ की कहानी उस राह पर जाती है, जहां डर सिर्फ एक सीन नहीं, बल्कि इमोशन है। यह एक मां की राक्षसों से लड़ाई है। वहीं फिल्म की कहानी मेंपौराणिकता सिर्फ सजावट नहीं है, बल्कि पूरी कहानी की जड़ है।

जब अंबिका अपनी बेटी को बचाने के लिए राक्षसी ताकत से टकराती है, तो वह इंसानी कमजोरियों को पीछे छोड़ देती है। वह सिर्फ एक मां नहींरहती बल्कि वह एक सोच बन जाती है, जो बुराई को उसके जड़ से काटने निकली है। यही वो पल हैं जहां फिल्म दिल और दिमाग दोनों पर असरडालती है।

काजोल ने ऐसा काम किया है जिसे शब्दों में बताना मुश्किल है। उन्होंने अंबिका के किरदार को सिर्फ निभाया नहीं बल्कि जिया है। उनकी चुप्पी, उनकी आंखें, उनकी लड़ाई सब कुछ सच्ची लगती है। रोनित रॉय और खेरीन शर्मा समेत इंद्रनील सेनगुप्ता, जितिन गुलाटी, गोपाल सिंह, यानियाभारद्वाज और रूपकथा चक्रवर्ती जैसे कलाकारों की परफॉर्मेंस कहानी को असल और असरदार बनाती है।

विशाल फुरिया ने हॉरर को नए मायनों में पेश किया है। उन्होंने ऐसे फ्रेम चुने हैं, जहां डर चुपचाप आता है और ठहर जाता है। सीन में हलचल नहीं, सन्नाटा है और वहीं से जन्म लेता है एक गहरा डर, जो आपको अंदर तक घेर लेता है।

माँ में तकनीक चमकने के लिए नहीं, कहानी को महसूस कराने के लिए है। ‘काली शक्ति’ गाना कमाल का है। साउंड का इस्तेमाल भी बहुतसमझदारी से किया गया है, न ज़्यादा, न कम।

अजय देवगन, ज्योति देशपांडे और कुमार मंगत पाठक ने इस फिल्म में दिखाया कि बड़े प्रोडक्शन हाउस भी सेंसिटिव और गहराई से भरी कहानियों कोस्पेस दे सकते हैं। ‘माँ’ की आत्मा भले एक गांव में हो, लेकिन उसका असर देशभर में महसूस होगा।

क्या एक मां अपने दम पर बुराई को खत्म कर सकती है?क्या पुरानी पौराणिक कहानियों में आज भी चेतावनी छिपी है? क्या डर दिखाने से ज़्यादा, महसूस कराना ज़रूरी है? तो इन सवालों का जवाब जानने के लिए ‘माँ’ ज़रूर देखें।

‘माँ’ एक आम हॉरर फिल्म नहीं है। ये ममता का, शक्ति का और सच्चे डर का खूबसूरत संगम है, जो दिखता कम है, लेकिन महसूस गहराई से होता है।यह फिल्म देखकर आप ना सिर्फ डरेंगे, बल्कि देर तक इसके बारे में सोचेंगे। तो इस वीकेंड आप कुछ अच्छा देखन चाहते हैं तो यह फिल्म आपके लिएही बनी है।


बरेली और देश, दुनियाँ की ताजा ख़बरे हमारे Facebook पर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें,
और Telegram चैनल पर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



You may also like !


मेरा गाँव मेरा देश

अगर आप एक जागृत नागरिक है और अपने आसपास की घटनाओं या अपने क्षेत्र की समस्याओं को हमारे साथ साझा कर अपने गाँव, शहर और देश को और बेहतर बनाना चाहते हैं तो जुड़िए हमसे अपनी रिपोर्ट के जरिए. bareillyvocalsteam@gmail.com

Follow us on

Copyright © 2021  |  All Rights Reserved.

Powered By Newsify Network Pvt. Ltd.