राष्ट्रीय मिति माघ 03, शक संवत 1946, माघ कृष्णा, नवमी, बृहस्पतिवार, विक्रम संवत् 2081। सौर माघ मास प्रविष्टे 10, रज्जब 22, हिजरी 1446 (मुस्लिम) तदनुसार अंग्रेजी तारीख 23 जनवरी सन् 2025 ई॰। सूर्य उत्तरायण, दक्षिण गोल, शिशिर ऋतुः। राहुकाल अपराह्न 01 बजकर 30 मिनट से 03 बजे तक। नवमी तिथि सायं 05 बजकर 38 मिनट तक उपरांत दशमी तिथि का आरंभ।
श्री सर्वेश्वर पञ्चाङ्गम् 🌞 🌕
------------------------------------------------
🚩🔱 धर्मो रक्षति रक्षितः🔱 🚩
🌅पंचांग- 23.01.2025🌅
युगाब्द - 5125
संवत्सर - कालयुक्त
विक्रम संवत् -2081
शाक:- 1946
ऋतु- शिशिर __ उत्तरायण
मास - माघ _ कृष्ण पक्ष
वार - गुरुवार
तिथि - अष्टमी 15:17:36
नक्षत्र स्वाति 26:33:15
योग शूल 28:36:27
करण कौलव 15:17:36
करण तैतुल 28:30:38
चन्द्र राशि - तुला
सूर्य राशि - मकर
🚩🌺 आज विशेष 🌺🚩
✍️ गुरु व्रत
🍁 अग्रिम (आगामी पर्वोत्सव 🍁
🔅 षट्तिला एकादशी व्रत
. 25 जनवरी 2025
(शनिवार)
🔅 प्रदोष व्रत
. 27 जनवरी 2025
(सोमवार)
🔅 मौनी अमावस व्रत
. 29 जनवरी 2025
(बुधवार)
🔅 गुप्त नवरात्र प्रारंभ
. 30 जनवरी 2025
(गुरुवार)
🔅 बसंत पंचमी
. 02 फरवरी 2025
(रविवार)
🔅 सूर्य रथ सप्तमी
. 04 फरवरी 2025
(मंगलवार)
🔅 महानवमी, गुप्त नवरात्र पूर्ण
. 06 फरवरी 2025
(गुरूवार)
🔅 जया एकादशी व्रत
. 08 फरवरी 2025
(शनिवार)
🕉️🚩 यतो धर्मस्ततो जयः🚩🕉️
🕰️ समय चक्र 🕰️
समय बहुत बलवान होता है ! वह शिखण्डी से भीष्म को मात दिला सकता है !
कर्ण के रथ को फंसा सकता है !
द्रौपदी का चीरहरण करा सकता है !
इसलिये किसी से डरना है तो वह है समय !
महाभारत में एक प्रसंग आता है जब धर्मराज युधिष्ठिर ने विराट के दरबार में पहुँचकर कहा-
हे राजन ! मैं व्याघ्रपाद गोत्र में उत्पन्न हुआ हूँ तथा मेरा नाम कंक है मैं द्यूत विद्या में निपुण आपके पास आपकी सेवा करने की कामना लेकर उपस्थित हुआ हूँ।
द्यूत ...जुआ ...वह खेल जिसमें धर्मराज अपना सर्वस्व हार गए थे अब कंक बन कर वही खेल वह राजा विराट को सिखाने लगे।
जिस बाहुबली के लिये रसोइये भोजन परोसते थे वह भीम बल्लभ का भेष धारण कर रसोइया बन गये ; नकुल और सहदेव पशुओं की देखरेख करने लगे ; दासियों से घिरी रहने वाली महारानी द्रौपदी ...स्वयं एक दासी सैरन्ध्री बन गयी और धनुर्धर उस युग का सबसे आकर्षक युवक, वह महाबली योद्धा द्रोण का सबसे प्रिय शिष्य ; जिसके धनुष की प्रत्यंचा पर बाण चढ़ते ही युद्ध का निर्णय हो जाता था वह अर्जुन पौरुष का प्रतीक महानायक अर्जुन एक नपुंसक बन गया।
उस युग में पौरुष को परिभाषित करने वाला अपना पौरुष त्याग कर होठों पर लाली और आंखों में काजल लगा कर बृह्नला बन गया।
परिवार पर एक विपदा आयी तो धर्मराज अपने परिवार को बचाने हेतु कंक बन गया। पौरुष का प्रतीक एक नपुंसक बन गया एक महाबली साधारण रसोईया बन गया नकुल और सहदेव पशुओं की देख रेख करते रहे ; और द्रौपदी एक दासी की तरह महारानी की सेवा करती रही।
पांडवों के लिये वह अज्ञातवास का काल उनके लिये अपने परिवार के प्रति अपने समर्पण की पराकाष्ठा थी।
वह जिस रूप में रहे जो अपमान सहा ,जिस कठिन दौर से गुज़रे उसके पीछे उनका कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं था अपितु परिस्थितियों को देखते हुये परिस्थितियों के अनुरूप ढल जाने का काल था !!
आज भी अज्ञातवास जी रहे ना जाने कितने महायोद्धा हैं कोई धन्ना सेठ की नौकरी करते उससे बेवजह गाली खा रहा है क्योंकि उसे अपनी बिटिया की स्कूल फीस भरनी है।
बेटी के ब्याह के लिये पैसे इकट्ठे करता बाप एक सेल्समैन बन कर दर दर धक्के खा कर सामान बेचता दिखाई देता है।
ऐसे असंख्य पुरुष निरंतर संघर्ष से हर दिन अपना सुख दुःख छोड़ कर अपने परिवार के अस्तिव की लड़ाई लड़ रहे हैं। रोज़मर्रा के जीवन में किसी संघर्षशील व्यक्ति से रूबरू हों तो उसका आदर कीजिये उसका सम्मान करें।
फैक्ट्री के बाहर खड़ा गार्ड......होटल में रोटी परोसता वेटर...सेठ की गालियां खाता मुनीम वास्तव में कंक , बल्लभ और बृह्नला ही है
क्योंकि कोई भी अपनी मर्ज़ी से संघर्ष या पीड़ा नही चुनता वे सब यहाँ कर्म करते हैं वे अज्ञात वास जी रहे हैं......!
परंतु वो अपमान के भागी नहीं बल्कि प्रशंसा के पात्र हैं यह उनकी हिम्मत,ताकत और उनका समर्पण है कि विपरीत परिस्थितियों में भी वह डटे हुये हैं।
वो कमजोर नहीं हैं उनके हालात कमज़ोर हैं उनका वक्त कमज़ोर है।
अज्ञातवास के बाद बृह्नला जब पुनः अर्जुन के रूप में आये तो कौरवों के नाश कर दिया।
वक्त बदलते वक्त नहीं लगता इसलिये जिसका वक्त खराब चल रहा हो,उसका उपहास और अनादर ना करें उसका सम्मान करें,उसका साथ दें क्योंकि एक दिन संघर्षशील कर्मठ ईमानदारी से प्रयास करने वालों का अज्ञातवास अवश्य समाप्त होगा।
समय का चक्र घूमेगा और इतिहास बृह्नला को भूलकर अर्जुन को याद रखेगा।
यही नियति है ; यही समय का चक्र है। यही महाभारत की भी सीख है!
जय जय श्री सीताराम👏
जय जय श्री ठाकुर जी की👏
(जानकारी अच्छी लगे तो अपने इष्ट मित्रों को जन हितार्थ अवश्य प्रेषित करें।)
ज्यो.पं.पवन भारद्वाज(मिश्रा) व्याकरणज्योतिषाचार्य
पुजारी -श्री राधा गोपाल मंदिर, (जयपुर)