मुंबई, 06 मार्च, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा कि 16 साल तक लिवइन रिलेशनशिप में रहने के बाद कोई महिला रेप का आरोप नहीं लगा सकती। सिर्फ शादी करने का वादा तोड़ने से रेप का मामला नहीं बनता, जब तक यह साबित न हो जाए कि शुरुआत से ही शादी की कोई मंशा नहीं थी। महिला ने 2022 में अपने पूर्व लिवइन पार्टनर पर रेप का केस दर्ज कराया था। उसका आरोप था कि 2006 में पार्टनर जबरदस्ती उसके घर में घुसा और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। बाद में शादी का झांसा देकर 16 साल तक उसका शोषण किया। फिर किसी दूसरी महिला से शादी कर ली।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर कोई महिला इतने समय तक रिश्ते में रहती है, तो इसे धोखा या जबरदस्ती नहीं कहा जा सकता है। यह मामला लिवइन रिलेशनशिप के बिगड़ने का है, न कि रेप का। कोर्ट ने सवाल उठाया कि एक पढ़ी-लिखी और आत्मनिर्भर महिला इतने सालों तक किसी के धोखे में कैसे रह सकती है। ऐसा कैसे हो सकता है कि जब अचानक उसका पार्टनर किसी और से शादी कर ले, तब केस दर्ज कराए। कोर्ट ने मामला खत्म करते हुए कहा कि केस जारी रखना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
वहीं, इसी तरह के एक अन्य मामले के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर, 2024 में कहा था कि ब्रेकअप या शादी का वादा तोड़ना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं हो सकता। हालांकि, ऐसे वादे टूटने पर शख्स इमोशनली परेशान हो सकता है। अगर वह सुसाइड कर लेता है, तो इसके लिए किसी दूसरे व्यक्ति को अपराधी नहीं माना जा सकता। जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस उज्ज्ल भुइयां की बेंच ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को पटल दिया था। कर्नाटक हाईकोर्ट आरोपी कमरुद्दीन दस्तगीर सनदी को अपनी गर्लफ्रेंड को धोखा देने और आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी पाया गया था। हाईकोर्ट ने आरोपी को 5 साल की जेल और 25 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को क्रिमिनल केस न मानकर नॉर्मल ब्रेकअप केस माना था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट से पहले ट्रायल कोर्ट भी आरोपी को बरी कर चुका था।