मुंबई, 08 जून, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में धांधली के आरोप लगाने के 24 घंटे बाद भी उन्होंने चुनाव आयोग को कोई औपचारिक पत्र नहीं भेजा है और न ही आयोग से मुलाकात के लिए समय मांगा है। यह जानकारी चुनाव आयोग से जुड़े एक वरिष्ठ सूत्र ने समाचार एजेंसी एएनआई को दी। आयोग का कहना है कि राहुल गांधी एक ओर अपने आरोपों को गंभीर बताते हैं, लेकिन दूसरी ओर इन मुद्दों पर औपचारिक प्रक्रिया अपनाने से बचते हैं। सूत्रों ने स्पष्ट किया कि किसी भी संवैधानिक संस्था की ओर से जवाब तभी दिया जा सकता है जब औपचारिक रूप से पत्र लिखा जाए। राहुल गांधी ने 7 जून को एक लेख इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित किया था, जिसमें उन्होंने दावा किया कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मैच फिक्सिंग हुई थी और बिहार में भी ऐसी ही आशंका है। इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर चुनाव आयोग को जवाब देने की चुनौती दी थी।
अपने पोस्ट में राहुल ने कहा कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और उसे बिना हस्ताक्षर वाले अस्पष्ट नोट्स के बजाय गंभीर सवालों के स्पष्ट और दस्तावेज़ी जवाब देने चाहिए। उन्होंने आयोग से अपने सवालों का उत्तर देने और अपनी निष्पक्षता साबित करने को कहा। इसके जवाब में चुनाव आयोग के सूत्रों ने रविवार को कहा कि देश भर में तैनात 10.5 लाख बूथ लेवल अधिकारी, 50 लाख मतदान कर्मचारी और 1 लाख मतगणना पर्यवेक्षक राहुल गांधी के आरोपों से आहत हैं क्योंकि ये आरोप उनकी मेहनत और ईमानदारी पर सीधा सवाल उठाते हैं। जब राहुल गांधी ने मतदान केंद्रों के सीसीटीवी फुटेज की मांग की, तो चुनाव आयोग ने जवाब में कहा कि मतदान केंद्रों पर लगे कैमरों के फुटेज हाईकोर्ट की निगरानी में ही देखे जा सकते हैं ताकि मतदाताओं की गोपनीयता बनी रहे। आयोग ने यह भी सवाल उठाया कि क्या राहुल गांधी अब हाईकोर्ट की प्रक्रिया पर भी विश्वास नहीं करते। एक दिन पहले ही चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को निराधार बताते हुए कहा था कि जब चुनाव परिणाम उनके पक्ष में नहीं आते, तभी वे इस तरह के दावे करने लगते हैं। आयोग ने यह भी याद दिलाया कि 24 दिसंबर 2024 को कांग्रेस पार्टी को भेजे गए पत्र में ये सभी तथ्य साफ तौर पर बताए गए थे, जो अब भी आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं। चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि इस प्रकार के आरोप न केवल गलत सूचना फैलाते हैं बल्कि उन हजारों पार्टी प्रतिनिधियों और लाखों सरकारी कर्मचारियों की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं, जो पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ चुनाव प्रक्रिया को सफल बनाते हैं। आयोग ने स्पष्ट किया कि देश की चुनावी प्रक्रिया में मतदाता सूची से लेकर वोटिंग और मतगणना तक हर कदम सरकारी कर्मचारियों और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की निगरानी में पूरा होता है।